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सहारा में लगाया है रुपया और मैच्योरिटी पर नहीं मिल रहा, तो यह खबर आपके लिए है

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सहारा समूह की कुछ कंपनियों के खिलाफ सीरियस फ्राड इन्वेस्टीगेशन आफिस (एसएफआइओ) द्वारा की जा रही जांच पर रोक लगाने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। केंद्र सरकार के कारपोरेट मंत्रलय, रजिस्ट्रार आफ कंपनीज, एसएफआइओ और एसएफआइओ के जांच अधिकारी ने संयुक्त रूप से विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर दिल्ली हाई कोर्ट का 13 दिसंबर, 2021 का आदेश रद करने की मांग की है। इस आदेश के जरिये हाई कोर्ट ने सहारा की कंपनियों के खिलाफ चल रही एसएफआइओ की जांच और आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका पर जल्द सुनवाई की गुहार लगाई थी, जिस पर कोर्ट ने विचार करने की बात कही है।


याचिका के अनुसार जांच में पता चला है कि सहारा की तीन कंपनियों ने ज्यादा रिटर्न के वादे वाली स्कीमों के जरिये जनता से 50,000 करोड़ रुपये एकत्र किए, लेकिन निवेशकों को रकम की मैच्योरिटी के बाद भी जमा कराई गई राशि का भुगतान नहीं किया गया। बल्कि निवेशकों को उनकी जमा कराई गई राशि को समूह की अन्य कंपनियों की उस समय चल रही स्कीमों में कन्वर्ट करने के लिए मजबूर होना पड़ा। एसएफआइओ ने शुरुआत में सहारा समूह की तीन कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू की थी। बाद में पता चला कि पैसे की हेरफेर में छह और कंपनियां शामिल हैं।

शुक्रवार को सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र करते हुए जल्द सुनवाई का आग्रह किया। मेहता ने कहा कि जांच पर रोक लगाने का हाई कोर्ट का आदेश ठीक नहीं है। जांच पूरी करने के लिए 31 मार्च की समय सीमा है। कोर्ट ने कहा कि वह दस्तावेज देखकर सुनवाई की तिथि तय करेगा। सरकार की ओर से दाखिल विशेष अनुमति याचिका में कहा गया है कि रजिस्ट्रार आफ कंपनीज को निवेशकों की ओर से पैसे का भुगतान नहीं किए जाने की शिकायतें मिली थीं। इस पर रजिस्ट्रार आफ कंपनीज ने कंपनी एक्ट के तहत जांच कर 14 अगस्त, 2018 को केंद्र सरकार को रिपोर्ट दी। इसमें सहारा की क्यू शाप यूनिक प्रोडक्ट्स रेंज लिमिटेड, सहारा क्यू गोल्ड मार्ट लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन लिमिटेड के कामकाज की जांच कराने की सिफारिश की गई थी।

रजिस्ट्रार कंपनी की रिपोर्ट के आधार पर कारपोरेट मामलों के मंत्रलय ने 31 अक्टूबर, 2018 को एसएफआइओ को तीनों कंपनियों के कामकाज की जांच करने के आदेश दिए। इन तीन कंपनियों की जांच में एसएफआइओ को पता चला कि सहारा समूह की छह अन्य कंपनियों एंबी वैली लिमिटेड, किंग एंबी सिटी डेवलेपर्स कारपोरेशन लिमिटेड, सहारा इंडिया कमर्शियल कारपोरेशन लिमिटेड, सहारा प्राइम सिटी लिमिटेड, सहारा इंडिया फाइनेंशियल कारपोरेशन लिमिटेड और सहारा इंडिया रियल एस्टेट कारपोरेशन लिमिटेड पहले की उन तीन कंपनियों के साथ ही गुथी हुई हैं। उनमें बहुत ज्यादा अंतर कंपनी निवेश हुआ है। जांच में यह भी पता चला कि इन कंपनियों के बीच शेयरों की क्रास होल्डिंग है।

इसलिए एसएफआइओ के आग्रह पर और जांच में सामने आई चीजों को देखते हुए कारपोरेट मामलों के मंत्रलय ने कंपनी एक्ट कानून में मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए 27 अक्टूबर, 2020 को इन छह अन्य कंपनियों के कामकाज की भी जांच के आदेश दिए। याचिका में कहा गया है कि जब जांच चल रही थी, इसी बीच सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन लिमिटेड ने दिल्ली हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की। हाई कोर्ट ने इस रिट पर 13 दिसंबर, 2021 को आदेश दिया। इसमें सहारा की कंपनियों के खिलाफ जांच के केंद्र सरकार के 31 अक्टूबर 2018 और 27 अक्टूबर, 2020 के आदेश पर रोक लगा दी। साथ ही आगे की कार्रवाई और लुकआउट नोटिस पर भी रोक लगा दी। कहा है कि ऐसा आदेश देते वक्त हाई कोर्ट ने कानूनी प्रविधानों और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों पर गौर नहीं किया।

’केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की विशेष अनुमति याचिका

’निवेशकों को स्कीम मैच्योर होने के बाद भी पैसा वापस नहीं किया

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