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मिड-डे मील में मशरूम ने खोली महिलाओं की तरक्की की नई राह, देवरिया के सीडीओ की पहल बेहतर प्रयोग के रूप में चिह्नित

 मिड-डे मील में मशरूम ने खोली महिलाओं की तरक्की की नई राह, देवरिया के सीडीओ की पहल बेहतर प्रयोग के रूप में चिह्नित

लखनऊ। देवरिया जिले ने मशरूम को स्कूली बच्चों के मिड-डे मील में शामिल कर समूह में काम करने वाली महिलाओं की तरक्की की नई राह खोली है। स्कूली बच्चों को स्कूल पूर्व शिक्षा का बेहतर वातावरण देने का काम भी किया है। शासन ने प्रदेश के छह जिलों के सीडीओ को लीक से हटकर शानदार प्रयास करने के लिए चिह्नित किया है। देवरिया भी उनमें से एक है।


देवरिया में यह पहल वहां के सीडीओ व 2015 बैच के आईएएस अधिकारी शिवशरनप्पा जीएन. के नेतृत्व में हुई है। बंगलूरू (कर्नाटक) के रहने वाले शिवशरनप्पा फरवरी 2019 से देवरिया के सीडीओ हैं। बिहार सीमा पर स्थित इस जिले में शिवशरनप्पा ने केंद्र सरकार द्वारा मशरूम को सुपरफूड के रूप में अधिसूचित करने को एक अवसर के रूप में लिया। उन्होंने मशरूम को स्कूली बच्चों के मिड-डे मील में शामिल करने की पहल की और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, मुख्य सेविकाओं, ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े समूहों, कृषक उत्पादक कंपनियों व बेसिक शिक्षा विभाग को एकचेन में लाकर इसे जमीन पर उतारा।

शिवशरनप्पा ने पहल को कारगर तरीके से लागू करने के लिए मुंबई की टुगेदर इन ट्रांसफार्मिंग लनिंग इन इंडिया (तितली) संस्थान का सहयोग लिया जिसने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व मुख्य सेविकाओं को प्रशिक्षण देकर बच्चों को स्कूल पूर्व शिक्षा देकर वातावरण निर्माण का काम किया इस पहल से समूह से जुड़ी महिलाओं की आय में उल्लेखनीय इजाफा हुआ। साथ ही स्कूली बच्चों में कुपोषण को कम करने में भी मदद मिली। दो ब्लॉकों में पायलट आधार पर शुरू की गई इस पहल को अब जिले के सभी ब्लॉकों में विस्तार दिया जा रहा है। पिछले दिनों अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री एसपी गोयल की उपस्थिति में प्रदेश के सभी सीडीओ की उपस्थिति में इस पहल का प्रजेंटेशन हुआ।
हफ्ते में दो दिन मशरूम

मिड-डे मील योजना में स्कूली बच्चों की पोषण की स्थिति में सुधार के लिए मशरूम को शामिल किया गया। एक से पांच तक नामांकित बच्चों को 300 कैलोरी व 12 ग्राम प्रोटीन के साथ पकाया मध्याह्न भोजन देने की व्यवस्था है। आयस्टर मशरूम को प्रोटीन, विटामिन, खनिज, फाइबर व एंटी ऑक्सीडेंट का समृद्ध स्रोत माना गया है। इसे सप्ताह में दो दिन देने की व्यवस्था की गई है।

14,400 रुपये प्रति सदस्य अतिरिक्त वार्षिक आय

मॉडल के मुताबिक फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी मशरूम उत्पादन के लिए ग्रामीण आजीविका मिशन के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। समूह की महिलाएं मशरूम का उत्पादन करती हैं। स्थानीय स्तर पर कच्चा माल उपलब्ध होने से इसे तैयार करने में बहुत कम निवेश की जरूरत होती है। पहले चरण में 100 स्कूलों में मशरूम आपूर्ति पर 30 सदस्यों वाले समूह को 17.53 लाख रुपये लाभ का अनुमान है। इसमें 2.37 लाख रुपये मशरूम

उत्पादन की वार्षिक लागत है जबकि आय 15.16 लाख रुपये होगी। इस तरह 10 महिलाओं वाले समूह में प्रत्येक सदस्य की 14,400 रुपये अतिरिक्त वार्षिक आय हो सकती है।

इस मॉडल से तीन

लक्ष्य प्राप्त हो रहे हैं। पहला, स्कूल पूर्व शिक्षा का वातावरण तैयार हो रहा है जिसमें कम आय वर्ग वाले बच्चों के माता-पिता की भी भागीदारी बढ़ रही है। दूसरा, बच्चों में कुपोषण कम करने में मदद मिली है। तीसरा, स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की आय में अतिरिक्त वृद्धि का रास्ता बना है। यह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के

वोकल फॉर लोकल व महिला किसानों की आर्थिक समृद्धि के आह्वान को भी बल देता है। - शिवशरनप्पा जीएन, सीडीओ देवरिया

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