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पुरानी पेंशन पर गरमाई सियासत : अखिलेश यादव की घोषणा से शिक्षकों-कर्मचारियों में जगी उम्मीदें तो एक वर्ग ने उठाए सवाल

 पुरानी पेंशन पर गरमाई सियासत : अखिलेश यादव की घोषणा से शिक्षकों-कर्मचारियों में जगी उम्मीदें तो एक वर्ग ने उठाए सवाल

प्रयागराज : सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की ओर से पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा को लेकर सियासत तेज हो गई है। शिक्षकों और कर्मचारियों का एक वर्ग इस घोषणा को उम्मीदों भरी नजर से देख रहा है। साथ ही इसे कर्मचारी संघर्षों की जीत बता रहा हैं। वहीं बड़ी संख्या ऐसे शिक्षकों और कर्मचारियों की भी है, जो इसे महज चुनावी घोषणा मान रहे हैं।

पुरानी पेंशन बहाली के लिए अटेवा की ओर से राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया गया। कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी पेंशनर्स अधिकार मंच का भी गठन किया गया है। इनके अलावा शिक्षकों और कर्मचारियों के अलग-अलग संगठनों की ओर से भी आंदोलन जारी है। इन आंदोलनों के बीच सपा की ओर से पुरानी पेंशन की बहाली की घोषणा से राजनीतिक गलियारे के अलावा शिक्षकों एवं कर्मचारियों के बीच भी बहस शुरू हो गई है।

अटेवा के प्रदेश संगठन मंत्री अशोक कनौजिया का कहना है कि अभी तक राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे से दूरी बना रखी थी। अखिलेश यादव की घोषणा से उम्मीद जगी है। उनका कहना है कि हालांकि मुलायम सिंह यादव के समय में ही एनपीएस लागू हुआ था। ऐसे में कई तरह के सवाल हैं लेकिन अब शिक्षकों और कर्मचारियों का दबाव बढ़ गया है। इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि सपा वादा पूरा करेगी।कुछ शिक्षक मानते हैं सिर्फ चुनावी घोषणाकर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी पेंशनर्स अधिकार मंच के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि अखिलेश यादव की घोषणा का हम स्वागत करते हैं। पेंशन राज्य का मुद्दा है। इसलिए उम्मीद करते हैं कि यह व्यवस्था लागू होगी। वहीं शिक्षक नेता तथा भाजपा राष्ट्रीय प्रशिक्षण अभियान के शैलेष पांडेय इसे सिर्फ चुनावी घोषणा मानते हैं। शैलेष का कहना है कि केंद्र में 2004 में एनपीएस लागू हुआ।

इसके बाद सबसे पहले उत्तर प्रदेश में यह लागू हुआ और उस समय मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। इसके अलावा 2016 में अखिलेश यादव सरकार में आंदोलन के दौरान लाठीचार्ज में शिक्षक की मौत हो गई थी।

शैलेष का यह भी कहना है कि शिक्षकों और कर्मचारियों की ओर से पुरानी पेंशन की लगातार मांग की जा रही है। इसी का दबाव है कि एनपीएस में जमा होने वाली सरकार की हिस्सेदारी को 10 से बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया है। कई अन्य संशोधन भी किए गए हैं। आगे भी पुरानी पेंशन की मांग उचित फोरम पर उठाई जाएगी।सोशल मीडिया पर शुरू है बहसपुरानी पेंशन को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। शिक्षकों के एक ग्रुप पर जारी बहस में एक वर्ग अखिलेश यादव की घोषणा के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है तो कई विरोध में हैं। शिक्षकों का कहना है कि सांसद रहते हुए योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य भी इसकी वकालत कर चुके हैं लेकिन सरकार बनने के बाद दोनों नेता इसे भूल गए। अब अखिलेश यादव ने भी वही तीर छोड़ा है।

तमिलनाडु में डीएमके ने भी चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू करने का वादा किया था लेकिन सरकार बनने के बाद धन की कमी बताकर मामला केंद्र के हवाले कर दिया गया। एक शिक्षक का यह भी कहना है कि पश्चिम बंगाल में पुरानी पेंशन इसलिए लागू है कि क्योंकि वहां 2020 तक पांचवां वेतन आयोग लागू रहा। छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वहां भी स्थिति बदल गई।

विवि के शिक्षकों ने उठाई पुरानी पेंशन की मांगसपा की ओर से पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक कॉलेजों के शिक्षकों ने भी मांग तेज कर दी है। शिक्षक केंद्र सरकार पर इसके लिए दबाव बनाने की बात कर रहे हैं। कई शिक्षकों ने पुरानी पेंशन बहाली की मांग केसमर्थन वाला स्टेटस भी लगाया है। ऑक्टा के अध्यक्ष डॉ. एसपी सिंह का कहना है कि पुरानी पेंशन की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन किया जा रहा है। मांग पूरी होने तक संघर्ष जारी रहेगा।

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