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खाली पदों पर नियुक्ति के संबंध में करें विचार

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2018 की पुलिस-पीएसी भर्ती में चयनित सामान्य महिला अभ्यर्थी से अधिक अंक प्राप्त करने वाली आरक्षित वर्ग की महिला अभ्यर्थियों की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा सौरव यादव केस में तय विधि सिद्धांत के आधार पर दिया है। कोर्ट ने पुलिस भर्ती बोर्ड को याचियों की नियुक्ति पर तीन माह में विचार करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने

शालू सहित 10 ओबीसी महिला अभ्यर्थियों की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता आशीष श्रीवास्तव ने बहस की। कोर्ट ने याचिका पर सरकार से जानकारी मांगी थी। इस पर अपर सचिव (पुलिस भर्ती बोर्ड) ने बताया कि याचियों का अंक दो मार्च 2020 को जारी अंतिम परिणाम में ओबीसी क्षैतिज आरक्षण के कट आफ अंक से कम है। इन्हें क्षैतिज आरक्षण मिल चुका है, अब हारिजंटल आरक्षण का दावा नहीं कर सकतीं। वहीं, याची अधिवक्ता का कहना था कि याचियों ने सामान्य महिला अभ्यर्थी के कट आफ अंक से अधिक अंक प्राप्त किए हैं। मेडिकल जांच में विफल अभ्यर्थियों के चलते काफी संख्या में पद खाली रह गए हैं। चयनित अभ्यर्थियों से छेड़छाड़ किए बगैर याचियों की नियुक्ति की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि आरक्षित वर्ग की महिला के अंक चयनित सामान्य महिला के अंक से अधिक अंक हैं तो उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। ऐसे में याचियों को नियुक्ति देने से इन्कार करना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करना है। कोर्ट ने कहा कि यदि अंतिम चयनित महिला अभ्यर्थी से याचियों को अधिक अंक प्राप्त हुए हैं तो दोबारा आरक्षण के आधार पर नियुक्ति देने से इन्कार नहीं किया जा सकता।

परिणाम घोषित होने के दो साल बाद आपत्ति का अधिकार नहीं विधि संवाददाता, प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2018 की सहायक अध्यापक भर्ती की उत्तर पुस्तिका पुनर्मूल्यांकन के बाद मिले अंक पर दो साल बाद दाखिल याचिका खारिज कर दी है। कहा कि 2018 में ही पुनरीक्षित अंतिम परिणाम घोषित किया गया। याची ने उस समय कोई आपत्ति नहीं की। अंतिम रूप से घोषित परिणाम पर बाद में आपत्ति करने का अधिकार नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति आरआर अग्रवाल ने वंदना गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

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