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मेरिट के साथ समझौते की इजाजत नहीं: 68500 सहायक अध्यापक भर्ती: अभ्यर्थियों की नियुक्ति निरस्त में हस्तक्षेप से इनकार



इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रतियोगी परीक्षा की आत्मा है, इसलिए मेरिट के साथ समझौते की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसा करने से परीक्षा तंत्र की विश्वसनीयता व भरोसा कम होता है।

कोर्ट ने 2018 की 68500 सहायक अध्यापक भर्ती में धांधली कर कम अंक पाने के बावजूद टेबुलेशन में अधिक अंक दर्ज कर चयनित अभ्यर्थियों की एक साल के भीतर जांच के बाद नियुक्ति निरस्त करने के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है और नियुक्ति निरस्त करने के खिलाफ दाखिल 29 सहायक अध्यापकों की 19 याचिकाएं खारिज कर दी हैं। साथ ही प्रत्येक याची पर पांच हजार रुपये का हर्जाना लगाते हुए यह राशि चार सप्ताह में हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति में जमा कर रसीद फाइल में रखने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने हमीरपुर की उर्वशी सहित अन्य की याचिकाओं पर दिया है। मामले के तथ्यों के अनुसार याची 2018 की सहायक अध्यापक भर्ती में चयनित हुए और काउंसिलिंग के बाद उनकी नियुक्ति की गई। प्रोवेशन अवधि में जांच की गई और फर्जीवाड़ा करने वाले हमीरपुर के 53 अध्यापकों की नियुक्ति निरस्त कर दी गई। इसके विरुद्ध याचिका पर हाईकोर्ट ने आंसर-की तलब की। पता चला कि आंसर-की में उर्वशी के 53 नंबर हैं और टेबुलेशन में 62 दर्ज हैं। इसी प्रकार 4, 8 व 8 नंबर पाने वालों को टेबुलेशन में क्रमश 84, 45, 68 नंबर हैं। याची सहायक अध्यापक पद पर चयन की योग्यता नहीं रखते थे। उन्हें धांधली कर चयनित किया गया। कोर्ट ने कहा कि पुनर्मूल्यांकन का प्रावधान न होने से कोई चुनौती नहीं दे सकता है। याचियों को नाजायज फायदा पहुंचाया गया, जिसे कोर्ट ने उत्तर पुस्तिका मंगाकर सत्यापित भी किया है। मामले की विवेचना चल रही है।

कोर्ट ने याचिकाएं खारिज करते हुए विवेचना के जल्द पूरी होने की उम्मीद जताई है।

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