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कटऑफ के फेर में ज्यादातर अभ्यर्थी हुए परीक्षा से बाहर, पीईटी की वैधता अवधि पांच वर्ष किए जाने की मांग


प्रयागराज। उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन आयोग (यूपीएसएसएससी) की ओर से प्रारंभिक पात्रता परीक्षा (पीईटी) में शामिल होने के लिए श्रेणीवार न्यूनतम कटऑफ निर्धारित न होने से ज्यादातर अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल होने से वंचित रह जा रहें हैं। इस मुद्दे पर अभ्यर्थियों ने सोशल मीडिया पर अभियान शुरू किया है। साथ ही मुख्यमंत्री और आयोग के अध्यक्ष को सैकड़ों की संख्या में ई-मेल भेजे हैं।

अभ्यर्थियों का कहना है कि अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से पीईटी में शामिल अभ्यर्थियों के लिए विभिन्न प्रकार की भर्तियों का संचालन किया जाता है। आयोग पदों की संख्या के मुकाबले 15 गुना अभ्यर्थियों को शॉर्टलिस्ट करता है, लेकिन इस प्रक्रिया में कम अभ्यर्थियों को शामिल होने का मौका मिलता है। खासकर कम पदों वाली भर्ती में ज्यादातर अभ्यर्थी शामिल होने से वंचित रह जाते हैं।

सिर्फ उन्हीं अभ्यर्थियों को भर्ती परीक्षा में शामिल होने का मौका मिलता है, जिन्हें पीईटी में अधिक अंक मिलते हैं। एक निश्चित कटऑफ न होने के कारण हर भर्ती में बार-बार उन्हीं अभ्यर्थियों को मौका मिलता है और अधिकतर अभ्यर्थी भर्ती प्रक्रिया से वंचित रह जाते हैं। अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री और आयोग के अध्यक्ष से आग्रह किया है कि पीईटी का न्यूनतम कटऑफ ( अलग-अलग श्रेणीवार) निर्धारित किया जाए।

इससे परीक्षा में अधिक से अधिक अभ्यर्थियों को शामिल होने का मौका मिल सकेगा। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपी टीईटी) में एक न्यूनतम कट ऑफ निर्धारित है। ठीक इसी तरह यूपीएसएसएससी भी पीईटी में एक न्यूनतम कटऑफ निर्धारित करे। अभ्यर्थियों का यह भी कहना है कि पीईटी की वैधता अवधि कम से कम पांच साल की जाए।


प्रतिवर्ष पीईटी के चक्कर में छात्रों का आधे से अधिक समय और धन तो बर्बाद होता ही है, साथ ही मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। भर्तियों में लेटलतीफी भी होती है। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी प्रशांत पांडेय का कहना है कि छात्रों की ओर से पीईटी के न्यूनतम कटऑफ और वैधता अवधि को लेकर ईमेल अभियान चलाया गया है, जिसके तहत मुख्यमंत्री और आयोग के अध्यक्ष को पत्र लिख कर राहत की मांग की गई है। इसके लिए सैकड़ों अभ्यर्थियों ने ईमेल भेजे हैं।

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