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आधा दर्जन से अधिक एप पर स्कूल और बच्चों से जुड़ीं सूचनाएं भरने से शिक्षण कार्य हुआ बेपटरी, बेसिक शिक्षक परेशान



🔴 विभिन्न मोबाइल एप व जुड़े काम

■ एनआईएलएप इसमें निरक्षर व्यक्तियों की पहचान का डाटा फीड होता है

■ शारदा ड्रॉप आउट बच्चों के नामांकन का डाटा फीड होता है।

■ यू-डायस विद्यालय की वार्षिक और छात्रों की प्रगति की फीडिंग

■ रोड एलांग- हिंदी और अंग्रेजी भाषा के विकास के लिए

■ समर्थ- अंग्रेजी भाषा व छात्रों की उपस्थिति दर्ज करने का काम

■ सरल- इसके जरिए बच्चों का निपुण एसेसमेंट टेस्ट किया जाता है।

■ दीक्षा शिक्षकों के अनिवार्य प्रशिक्षण की ऑनलाइन व्यवस्था के लिए

■ गूगल मीट अधिकारी इस एप के माध्यम से ऑनलाइन मीटिंग करते हैं


लखनऊ। प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग के विद्यालयों में इन दिनों अध्यापकों का ज्यादा समय मोबाइल पर बीत रहा है। वे मोबाइल पर विभिन्न एप के जरिए विभागीय डाटा फीडिंग में व्यस्त रहते हैं। सुबह बच्चों की फोटो अपलोड करने से शुरू हुई उनकी दिनचर्या शाम में डाटा फीडिंग के साथ समाप्त हो रही है। ऐसे में उन्हें पढ़ने-पढ़ाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है।



वर्तमान में विभाग के आधा दर्जन से अधिक एप पर स्कूल और बच्चों से जुड़ीं सूचनाएं भरने से शिक्षण कार्य बेपटरी है। इससे अध्यापक भी परेशान हैं। उनको प्रेरणा डीबीटी एप पर डीबीटी से दी जाने वाली 1200 रुपये की राशि का विवरण भरना होता है। प्रेरणा यूपी पर विद्यालय व छात्रों का डाटा और हाउस होल्ड सर्वे की फीडिंग करना होता है। नए बच्चों के रजिस्ट्रेशन में उनका नाम, जन्मतिथि, मां-पिता की डिटेल, उनके आधार नंबर, खाता नंबर, बैंक खाता लिंक है या नहीं, पता, पिन कोड, राशन कार्ड आदि जानकारी फीड करनी होती है। इस तरह हर एप पर डाटा फीडिंग में शिक्षकों में 15 से 30 मिनट तक का समय लगता है। ऑनलाइन बैठकें भी होती हैं। वे विभागीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होते हैं। जूम पर ऑनलाइन मीटिंग से लेकर प्रशिक्षण का काम भी ऑनलाइन ही करते हैं।



विभाग से नहीं मिला सीयूजी नंबर, न ही मोबाइल फोन, फिर भी मिल रही विभागीय प्रताड़ना

इन सारे एप के संचालन व डाटा फीडिंग के लिए शिक्षकों को विभाग से न तो सीयूजी नंबर दिया गया है, न ही मोबाइल फोन मिला है। यह काम वे अपने मोबाइल और डाटा से करते हैं। ग्रामीण इलाकों में खराब नेटवर्क भी बड़ा मुद्दा है। कई बार एक ही डाटा फीड करने में काफी समय लगता है। कुछ शिक्षक तो कार्यवाही के डर से रात में घर जाकर भी डाटा फीडिंग का काम पूरा करते हैं।



ऐसे कैसे होगी निपुण लक्ष्य की प्राप्ति

केंद्रीय योजना के तहत प्रदेश में निपुण लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभाग लगातार कोशिश कर रहा है। पर, सवाल यह भी है कि अगर शिक्षक सुबह से शाम तक डाटा फीडिंग में ही लगे रहेंगे तो वे बच्चों को समय कब देंगे। ऐसे में निपुण लक्ष्य की प्राप्ति कैसे हो सकेगी।



विभागीय काम के लिए शिक्षक एक दर्जन से अधिक एप का इस्तेमाल कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क भी बड़ी समस्या है। डाटा फीडिंग के लिए ब्लॉक, न्याय पंचायत स्तर पर कर्मचारी लगाने चाहिए। - विनय कुमार सिंह, प्रांतीय अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक स्नातक एसोसिएशन उप्र



शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए ये एप शुरू किए गए हैं। शिक्षकों को पढ़ाई के साथ यह आधुनिक शिक्षा से भी जोड़ते हैं। सीयूजी नंबर देने आदि को लेकर शिक्षक संगठनों ने प्रत्यावेदन दिया है। इस पर शासन विचार करेगा। -डॉ. महेंद्र देव, निदेशक, बेसिक शिक्षा विभाग





गुरुजी बने हर मर्ज की दवा... पढ़ाएं कब? बेसिक शिक्षा के अध्यापकों का अन्य कामों को करने में ही बीत रहा है पूरा दिन



लखनऊ। प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों को यह समझ नहीं आ रहा है कि वे बच्चों को पढ़ाएं कब उनके पास चुनाव कराने से लेकर स्कूल चलो अभियान संचारी रोग नियंत्रण अभियान, खाद्यान्न वितरण ड्यूटी, बच्चों के फोटो व प्रोफाइल अपडेट करने, स्कूल के बाद हाउसहोल्ड सर्वे आदि के काम भी हैं। ऐसे में गुरुजी इन कामों में इतना व्यस्त हैं कि उन्हें पढ़ाने का वक्त ही नहीं मिल रहा है।


प्रदेश में तमाम ऐसे विद्यालय हैं, जहां शिक्षकों की कमी है तो कई में छात्रों के अनुपात में शिक्षक नहीं है। कुछ जगहों पर शिक्षामित्र ही तैनात हैं। ऐसे में जब उनकी ड्यूटी चुनाव में बीएलओ, बीएलओ सुपरवाइजर, मतगणना या अन्य काम में लगती है तो विद्यालय की पढ़ाई व्यवस्था ठप हो जाती है। शिक्षकों से स्कूल चलो अभियान के अंतर्गत आउट ऑफ स्कूल बच्चों के चिह्नीकरण, पंजीकरण व नामांकन के लिए परिवार सर्वेक्षण भी कराया जा रहा है।



यह परिवार सर्वेक्षण सिर्फ आउट ऑफ स्कूल बच्चों व उनके माता-पिता के बारे में जानकारी जुटाने तक सीमित नहीं है। इसमें परिवार में जन्म लेने वाले से 14 वर्ष तक के बच्चों व 14 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक सदस्य के नाम, आयु, लिंग, मोबाइल नंबर समेत अन्य जानकारी जुटाई जा रही है।



यदि बच्चा किसी विद्यालय में नामांकित है तो कक्षा, विद्यालय के यूडायस कोड, आंगनवाड़ी केंद्र का कोड, विद्यालय / आंगनबाड़ी केंद्र का नाम और अगर स्कूल में नहीं पढ़ रहा है तो सात से 14 वर्ष की आयु के आउट ऑफ स्कूल बच्चों के लिए 23 कॉलम का अलग प्रोफार्मा भरेंगे। कई बार शिक्षकों की ड्यूटी बच्चों को अल्बेंडाजोल (पेट के कीड़े मारने की दवा) की गोली खिलाने और दवा खाने से छूटे बच्चों का डाटा रजिस्टर तैयार करने में भी लगा दी जाती है। इसके अलावा भी कई अन्य कामों में ड्यूटी लगा दी जाती है।



करे कोई, भुगते शिक्षक

बच्चे यूनिफार्म, जूता-मोजा पहनकर स्कूल आए, यह भी शिक्षक को सुनिश्चित करना होता है। कई बार अभिभावक इस मद में मिलने वाली राशि दूसरे काम में खर्च कर देता है। लेकिन इसकी जिम्मेदारी शिक्षक की तय की जाने लगती है। शिक्षकों को विद्यार्थियों को फोटो अपलोड करने का भी काम करना होता है।



शिक्षकों के पास खुद के लिए पढ़ाई का वक्त नहीं

हाल के वर्षों में 69,000 और 68,500 शिक्षक भर्ती हुई है। विभाग मानता है कि इसमें काफी संख्या में तकनीकी रूप से दक्ष लोग शिक्षक बने हैं। वहीं, शिक्षकों का यह भी कहना है कि बच्चों को कुछ नया और बेहतर पढ़ाने के लिए पढ़ना जरूरी है, लेकिन पूरा दिन बाबूगिरी में बीत जाता है।



ये काम भी कर रहे हैं अध्यापक

■ संचारी रोग नियंत्रण अभियान का प्रचार-प्रसार

■ शिक्षक संकुल, विभागीय अधिकारियों की बैठक में शिरकत

■ पोलियो ड्रॉप पिलाने आदि के काम



सामुदायिक सहभागिता बिना सभी के सहयोग के संभव नहीं है, शिक्षक इसमें प्रमुख भूमिका में हैं। परिवार सर्वे, डीबीटी आदि सरकारी योजनाओं को सभी को मिलकर पूरा करना है। पढ़ाई का काम मात्र चार घंटे का है, जिसके लिए उनके पास पर्याप्त समय है। योजनाएं एक-दूसरे से जुड़ी हैं, उन्हें बढ़ा- चढ़ाकर प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। विजय किरन आनंद, महानिदेशक, स्कूल शिक्षा

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