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यूपी बोर्ड भूला उत्तर प्रदेश की संस्कृति और स्वर्णिम इतिहास को संजोना

यूपी बोर्ड भूला उत्तर प्रदेश की संस्कृति और स्वर्णिम इतिहास को संजोना

अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण को भव्य रूप देने की तैयारियां चल रही हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश की संस्कृति व स्वर्णिम इतिहास से लाखों छात्र-छात्राओं को रूबरू कराने की पहल अब तक परवान नहीं चढ़ सकी है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) ने उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा के निर्देश पर इस दिशा में कदम भी बढ़ाए लेकिन, सूबे के सुनहरे इतिहास से छात्र-छात्राएं अब तक दूर हैं।

असल में, जनवरी 2018 में लखनऊ में तत्कालीन राज्यपाल रामनाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही महाराष्ट्र के उस समय मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फणनवीस ने समवेत स्वर में यूपी की महिमा का गौरव गान किया। उसी समय यह तय हुआ कि इतिहास विषय के विशेषज्ञों के निर्देशन में किताब तैयार कराई जाए और उसे यूपी बोर्ड की कक्षा 12 में इतिहास विषय के साथ पढ़ाया जाए। उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने निर्देश दिया था कि एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में परिवर्तन न करके किताब को इतिहास विषय में बुकलेट के रूप में जोड़ा जाए।

यूपी बोर्ड के माध्यमिक कॉलेजों में उसी समय एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू हुआ था। वहीं, प्रदेश सरकार का जोर अपनी संस्कृति और स्वर्णिम इतिहास को अक्षुण्ण बनाए रखने पर रहा। सरकार ने बोर्ड प्रशासन को निर्देश दिया था कि एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के साथ स्थानीय महापुरुष, गौरवशाली इतिहास पढ़ाने का इंतजाम हो। बोर्ड प्रशासन ने कक्षा 12 के इतिहास विषय में अलग बुकलेट जोड़ने पर कार्य शुरू किया। प्रस्तावित पुस्तक का शीर्षक स्वतंत्रता आंदोलन और संविधान निर्माण में उत्तर प्रदेश का योगदान तय हुआ था। बुकलेट में उत्तर प्रदेश के आजादी के रणबांकुरों का जिक्र करना था। 1857 से 1947 तक के कालखंड में मंगल पांडेय, चंद्रशेखर आजाद, झांसी की रानी जैसे अनगिनत नाम होते। साथ ही 1916 के लखनऊ अधिवेशन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के बीज मंत्र के उद्घोष का भी जिक्र होता।


आजादी के आंदोलन में जेल गईं और उत्तर प्रदेश की पहली मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी, जो 1946 में संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं के भी उल्लेखनीय कार्यों से छात्र-छात्राओं को अवगत कराया जाना था। इसके अलावा सुचेता कृपलानी के पति जेबी कृपलानी, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, गोविंद बल्लभ पंत, पुरुषोत्तम दास टंडन आदि का योगदान भी पढ़ाया जाना था। बोर्ड सचिव नीना श्रीवास्तव ने इस दिशा में कार्य करके प्रस्ताव तक भेजा लेकिन, उसे पाठ्यक्रम में जोड़ने का आदेश नहीं मिल सका। इसमें एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम की रोड़ा बना है। इधर, यूपी बोर्ड में वैसे भी तीस प्रतिशत पाठ्यक्रम घटा है। 

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