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यूपी के शिक्षा सेवा अधिकरण में अध्यापकों के लिए तत्काल और सीधे हाई कोर्ट जाने का रास्ता किया जा रहा बन्द ⁉️

 यूपी के शिक्षा सेवा अधिकरण में अध्यापकों के लिए तत्काल और सीधे हाई कोर्ट जाने का रास्ता किया जा रहा बन्द ⁉️

यह समझ लीजिए कि बेसिक शिक्षा परिषद के अधीन एवं सहायता प्राप्त अध्यापकों, माध्यमिक शिक्षा परिषद और संस्कृत शिक्षा परिषद के सहायता प्राप्त अध्यापकों और सहायता प्राप्त महाविद्यालय के अध्यापकों के लिए तत्काल और सीधे हाई कोर्ट जाने का रास्ता बन्द किया जा रहा है। पहले आप विभाग में शिकायत करें, जिसके निस्तारण की 120 दिन तक प्रतीक्षा करें, उत्तर न मिले तो रिमाइंडर दें और फिर 30 दिन तक प्रतीक्षा करें, अर्थात 4- 5 माह बाद आप इस अधिकरण में केस दाखिल कर पाएंगे, हाई कोर्ट तो भूल ही जाओ। हां, एक बात अच्छी है कि आप चाहें तो अधिकरण में सीधे पैरवी कर सकते हैं या अपने साथी/ मित्र से पैरवी करा सकते हैं, वकील की बाध्यता नहीं है। राजकीय विद्यालय, महाविद्यालय के अध्यापक एवं मदरसा बोर्ड के शिक्षक इससे मुक्त हैं।




आप कल्पना कीजिए कि किसी विभागीय अधिकारी ने आपका किसी प्रकरण में वेतन अवरुद्ध कर दिया, मतलब निलम्बित भी नहीं किया कि आपको आधा वेतन मिल सके, अब आपने इसकी शिकायत या प्रार्थना की और विभाग नीरो की तरह वंशी बजाता रहा, आपको 4 माह तक कोई उत्तर भी नहीं दिया। अब आप एक और रिमाइंडर दीजिये और फिर एक माह तक प्रतीक्षा करिये। करिये- करिये ---, ऐसा ही अधिकरण के नियमों में लिखा है। अब जब 5 माह आप बिना वेतन के घिसट चुके होंगे, आप परिवार, बच्चों के खर्च हेतु सभी मित्रों से उधार भी ले चुके होंगे। अब आपके पास अधिकरण पीठ तक जाने का किराया भी नहीं होगा, कोई अब और उधार भी नहीं देगा। सोचिये, तब क्या होगा, जब अधिकरण भी आपको केवल तारीख ही दे रहा होगा। क्योंकि उसमें सरकार द्वारा चयनित लोग ही फैसला सुनाएंगे। हाइकोर्ट में जज का चयन राज्य सरकार की परिधि से बाहर है। इसलिए स्वतन्त्रता प्रमाणित है।
जागो, मोहन प्यारे ! जागो।
आपका- शरद द्विवेदी

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