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48 वर्षों तक लगातार शिक्षक एमएलसी रहे ओमप्रकाश शर्मा का निधन, समर्थकों में शोक की लहर

 48 वर्षों तक लगातार शिक्षक एमएलसी रहे ओमप्रकाश शर्मा का निधन, समर्थकों में शोक की लहर

उत्‍तर प्रदेश के वरिष्ठ शिक्षक नेता और आठ बार एमएलसी रहे ओमप्रकाश शर्मा का शनिवार की शाम निधन हो गया। वे 87 वर्ष के थे। गत दिनों हुए मेरठ शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। वे लगातार 48 साल तक प्रदेश के शिक्षक राजनीति में दमदार भूमिका में रहे। शनिवार को भी दिन में उन्होंने शिक्षकों के धरने को संबोधित किया था।


वर्ष 1970 से लगातार शिक्षक राजनीति में सक्रिय मेरठ निवासी पूर्व एमएलसी ओमप्रकाश शर्मा का शनिवार की शाम निधन हो गया। वे मेरठ शिक्षक सीट से 48 साल से शिक्षक नेता के तौर पर एमएलसी रहे। कहने को वे मेरठ और सहारनपुर मंडल के नौ जिलों का विधान परिषद में प्रतिनिधित्ध करते थे, लेकिन उनकी पहचान देश और प्रदेश की राजनीति में शिक्षक नेताओं में बड़े नेता के तौर पर रही। बतौर निर्दलीय प्रत्याशी ओमप्रकाश शर्मा पहली बार 1970 में एमएलसी चुने गए थे। 1970 से 1976 तक एमएलसी रहे। 1976 से 1978 के बीच चुनाव नहीं हुआ था। उसके बाद से वह 1978 से लगातार एमएलसी चुने गए। वे लगातार आठ बार एमएलसी रहे। इस बार हुए एमएलसी के चुनाव में उन्हें पराजित होना पड़ा, लेकिन उन्होंने कहा था कि शिक्षकों के लिए लगातार काम करते रहेंगे। शनिवार को दिन में वे शिक्षकों के धरने में कड़ाके की ठंड में शामिल हुए। शाम में उनका निधन हो गया।

देश की राजनीति में बड़ा नाम, 48 साल का रहा रिकार्ड
मेरठ खंड शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी के चुनाव में ओमप्रकाश शर्मा का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। 48 साल का लगातार एमएलसी का रिकार्ड रहा। ओमप्रकाश शर्मा 50 साल पूर्व 1970 में पहली बार एमएलसी का चुनाव लड़े। शपथ पत्र के अनुसार अभी ओमप्रकाश शर्मा की आयु 87 वर्ष थी। मात्र 37 वर्ष की आयु् में वे पहली बार एमएलसी निर्वाचित हुए थे। तीन दिसंबर को आए रिजल्ट में उन्हें पहली बार हार का सामना करना पड़ा।

आधी सदी तक शिक्षक राजनीति की धुरी बने रहे
ओमप्रकाश शर्मा करीब आधी सदी (50 साल) उत्‍तर प्रदेश में शिक्षक राजनीति की धुरी बने रहे। उन्‍होंने शिक्षक विधायक का पहला चुनाव 1970 में जीता था। उन्‍हें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। शिक्षक एमएलसी की अन्‍य सीटों पर भी शर्मा गुट की तूती बोलती थी। लेकिन पिछले साल दिसम्‍बर में आधी सदी का यह सिलसिला थम गया। इस चुनाव में शर्मा गुट को जहां महज एक सीट पर संतोष करना पड़ा वहीं ओमप्रकाश शर्मा खुद पहली बार चुनाव हार गए थे। ओमप्रकाश शर्मा ने अंतिम चुनाव 2014 में जीता था। बताते हैं कि 90 के दशक में उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि सुबह आठ बजे मतगणना शुरू होने के दो घंटे के अंदर उन्‍हें प्रथम वरीयता के 50 प्रतिशत से अधिक मत मिल जाते थे। लेकिन पिछला चुनाव वह भाजपा उम्‍मीदवार से हार गए। इस हार के बाद ओमप्रकाश शर्मा ने कहा था कि इससे शिक्षकों के लिए उनके संघर्ष में कोई कमी नहीं आएगी। 

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